Tuesday, March 20, 2007

Alone !!!


आप से गिला, आप की कसम, सोचते रहे कर सके ना हम...उसकी क्या खता ला-दवा हैं गम,क्या गिला करे चारागर(डॉक्टर) से हम...ये अगर नही यार की गली,चलते-2 क्यों रुक गये कदम..

कब की पत्थर हो चुकी थी मुन्तजिर आंखे मगर, छुके जब देखा तो मेरे हाथ गीले हो गये,अब कोई उम्मीद है शाहिद ना कोई आरजू,आसरे छुटे तो जीने के वसीले हो गये,...

सामने आये मेरे,देखा मुझे बात भी की,मुस्कुराये भी पुराने किसी रिश्ते के लिये,कल का अखबार था,बस देख लिया, रख भी दिया...

उनकी उल्फ़त का यकीन हो, उनके आने की उम्मीद, होंगी दोनो सूरते तब हैं, बहार-ए-इन्तजार...उनके खत की आरजू हैं,उनकी आमद का ख्याल,किस कदर फ़ैला हुआ हैं, कारोबार-ए-इन्तजार

जादू है या तिल्सिम तुम्हारी जुबान मे,तुम झुठ कह रहे थे, मुझे ऐतबार था...क्या क्या हमारी सजदे की रुसवाईयां हुई,नक्शे कदम किसी का सरे रहगुजार था...

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